खींच भी लो हाथ रिश्तों से अगर,
मेरी ख़ातिर अपनी तर्जनी रखना।
मायूसियों में मैं किसी उदास शाम,
मुस्कुरा लूँ, इतनी गुदगुदी करना।
जो किसी गीत के बोल की तरह,
भूल भी जाओ तुम प्यार हमारा।
माना हो जाए मुश्किल वो गाना,
तो बस यूँ ही कभी गुनगुना लेना।
रिश्तों के फूल मुरझा भी जाए तो,
फेंकना बदगुमानी में क़तई भी ना।
मान के किसी मंदिर या मज़ार के,
फूलों-सी मन-मंजूषा सजा रखना।
सुलगने से मेरे महकता हो अगर,
रौशन मन का घर-कमरा तुम्हारा।
हरदम किसी मन्दिर की सुलगती,
अगरबत्तियों-सा सुलगता रखना।
वाह।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteउव्वाहहहह..
ReplyDeleteसुलगने से मेरे महकता हो अगर,
रौशन मन का घर-कमरा तुम्हारा।
सादर..
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Delete( "उव्वाहहहह" के लिए एक अलग से आभार :) ...)
रिश्तों के फूल मुरझा भी जाए तो,
ReplyDeleteफेंकना बदगुमानी में क़तई भी ना।
मान के किसी मंदिर या मज़ार के,
फूलों-सी मन-मंजूषा सजा रखना।...वाह! क्या बात है!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Delete(बड़े दिनों के बाद चिट्ठी (प्रतिक्रिया) आई है ~~~:) ...)
क्या बात है सुबोध जी !!!
ReplyDeleteमान के किसी मंदिर या मज़ार के,
फूलों-सी मन-मंजूषा सजा रखना।
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बस महकता रहूँ हर वक़्त तेरे आस पास
अपने पास मेरी यादों के इत्र का फाहा रखना ।।😄😄😄😄
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Delete(अलग से एक और आभार .. दो पंक्तियों के इज़ाफ़ा के लिए ..
"उम्मीद है कि हर बार तू इसी तरह इज़ाफ़ा करना ..." ☺☺😊😊
सुलगने से मेरे महकता हो अगर,
ReplyDeleteरौशन मन का घर-कमरा तुम्हारा।
वाह बहुत सुंदर आदरणीय
सादर
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुलगने से मेरे महकता हो अगर,
ReplyDeleteरौशन मन का घर-कमरा तुम्हारा।
हरदम किसी मन्दिर की सुलगती,
अगरबत्तियों-सा सुलगता रखना।
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteजो किसी गीत के बोल की तरह,
ReplyDeleteभूल भी जाओ तुम प्यार हमारा।
माना हो जाए मुश्किल वो गाना,
तो बस यूँ ही कभी गुनगुना लेना।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति सुबोध जी | रूहानी ज़ज्बातों की अक्काशी करती हुई !!!!!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
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