आजकल मुहल्ले या शहर-गाँव में कई-कई लाउडस्पीकरों की श्रृंखला में बजने (?) वाले कानफोड़ू तथाकथित जगराता, जागरण या सत्यनारायण स्वामी की कथा या फिर किसी भी धर्म के किसी भी धार्मिक जलसा में या शादी-विवाह और जन्मदिन के अवसर के अलावा कई दफ़ा तो शवयात्रा में भी बजने वाले निर्गुण के सन्दर्भ में .. बस यूँ ही ...
(१) कबीरा बेचारा ...
दिखा आज सुबह मुहल्ले में
कबीरा बेचारा बहुत ही हैरान -
कल तक तो बहरे थे यहाँ ख़ुदा,
हो गया है अब शायद भगवान ...
अब दूसरी रचना ( ? ) बिना बतकही या भूमिका के ही .. बस यूँ ही ...
(२) रामः रामौ रामा: ...
यूँ तो खींच ही लाते हैं एक दिन बाहर
रावण को हर साल पन्नों से रामायण के
और .. मिलकर मौजूदगी में हुजूम की
जलाते हैं आपादमस्तक पुतले उसके ।
पर अपने शहर का राम तो है खो गया
युगों से किसी मंदिर की किसी मूर्त्ति में
या शायद मोटे-मोटे रामायण के पन्नों में
या फिर "रामः रामौ रामा:" शब्दरूप में .. शायद ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी सर (महोदय)! आपको सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी! नमन आपको, साथ ही आभार आपका...
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर कृति।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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