नववधू-सी पर ..
बिन वधू प्रवेश मुहूर्त के
वक्त-बेवक्त .. आठों पहर
तुम्हारी यादों की दुल्हन
मेरे ज़ेहन की चौखट वाली
ख़्यालों की देहरी से,
पल-पल से सजे
वर्तमान समय सरीखे
चावल के कण-कण से भरे
नेगचार वाले कलश को
अपने नर्म-नाज़ुक पाँव से
धकेल कर हौले से परे,
संग-संग गुज़ारे लम्हों की
टहपोर लाल आलते में
सिक्त पाँवों से
मेरी सोचों के
गलियारे से होते हुए
मन के आँगन तक
एहसासों के पद चिन्ह
सजाती रहती है,
आहिस्ता-आहिस्ता,
अनगिनत ..
अनवरत ..
बस यूँ ही ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-08-2020) को "मन्दिर का निर्माण" (चर्चा अंक-3781) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी ! आभार आपका ...
Deleteवाह बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteवाह
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
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