आज की रचना/विचार- "विडम्बना ..."भी फिर एक बार पुराने समाचार पत्रों से सहेजे कतरनों में से एक है, जो 7 मार्च ' 2006 को झारखण्ड के धनबाद से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के मंगलवार को आने वाले सहायक पृष्ठों में छपी थी।
आज बकबक नहीं .. ना .. फिर कभी। आज तो बस .. इतना ही साझा करना भर है आप से कि ... ये रचना/विचार मेरे मन में भला पनपी कैसे होगी।
आज बकबक नहीं .. ना .. फिर कभी। आज तो बस .. इतना ही साझा करना भर है आप से कि ... ये रचना/विचार मेरे मन में भला पनपी कैसे होगी।
दरअसल 30 सितम्बर ' 2005 को यूरोप महादेश/महाद्वीप के डेनमार्क देश से प्रकाशित होने वाले डैनिश समाचार पत्र "The Jyllands-Posten" में धर्म-विशेष के पैगम्बर मोहम्मद साहब से संबंधित 12 संपादकीय कार्टून (व्यंग्यचित्र) छपे थे।
जिस के ख़िलाफ़ महीनों तक दुनिया भर में, ख़ास कर मुस्लिम राष्ट्रों में, विरोध प्रदर्शन चलता रहा था। अफ़ग़ानिस्तान, सोमालिया, ईरान, सीरिया, लेबनान के अलावा भारत, डेनमार्क, नॉर्वे और इंडोनेशिया में भी हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए थे। इनमें कई लोग जान से भी मारे भी गए थे। अन्य बहुत सारे लोगों के हताहत होने के साथ-साथ और भी कई नुकसान हुए थे। ये आग महीनों तक सुलगती रही थी।
अब इन सब से मन में जो बस यूँ ही ... तो नहीं कह सकते; हाँ इन घटनाओं से व्यथित मन में जो एक इतर बात उपजी, उसी ने इस रचना/विचार की निम्नलिखित शक़्ल ली थी।
जिस के ख़िलाफ़ महीनों तक दुनिया भर में, ख़ास कर मुस्लिम राष्ट्रों में, विरोध प्रदर्शन चलता रहा था। अफ़ग़ानिस्तान, सोमालिया, ईरान, सीरिया, लेबनान के अलावा भारत, डेनमार्क, नॉर्वे और इंडोनेशिया में भी हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए थे। इनमें कई लोग जान से भी मारे भी गए थे। अन्य बहुत सारे लोगों के हताहत होने के साथ-साथ और भी कई नुकसान हुए थे। ये आग महीनों तक सुलगती रही थी।
अब इन सब से मन में जो बस यूँ ही ... तो नहीं कह सकते; हाँ इन घटनाओं से व्यथित मन में जो एक इतर बात उपजी, उसी ने इस रचना/विचार की निम्नलिखित शक़्ल ली थी।
बस यूँ ही ... :-
विडम्बना ...
ये कविताएँ
शब्दकोश से सहेजे
शब्दों का महज मेल भर नहीं
जो लाए पपड़ाये होंठों पर
मात्र एक बुदबुदाहट।
और कार्टूनें
अनायास आड़ी-तिरछी
रेखाओं का सहज खेलभर नहीं
जो लाए बुझे मन में
मात्र कम्पनहीन गुदगुदाहट।
ये सारे के सारे देते ही हैं दस्तक
कभी सकारात्मक
तो कभी नकारात्मक
हो कर खड़े हमारे मन की चौखट पर
हो भले ही अनसुनी आहट।
यूँ तो .. कविता या भाषण
या कभी छोटा-सा नारा भी
करता है प्रेरित इतना कि
स्वेच्छा से आमजन तक
पा जाते हैं हँस-हँस कर शहादत।
या कभी छोटा-सा कार्टून भी
जो धर्म जैसे नाजुक
विषय-विशेष पर बना हो तो
अनुयायियों में उनके लाता है
अंतरराष्ट्रीय स्तर की बौखलाहट।
विडम्बना है ...
कि जो है असरदार
अनुयायियों और
समर्थकों पर भी
सार्थक या अनर्थक।
मगर होता नहीं असर
पाँच वर्षों तक
"उन पर" .. उनके स्वयं पर
बने तोंदिले कार्टूनों का
जो छपते हैं प्रायः
दैनिक अखबारों में
मानो ..हो हासिल उन्हें
थेथर गोह-सी महारत।
सत्य वचन!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन आपको .. ये घोषणा शायद भूलवश लिखा गई है आपसे .. क्योंकि 01 जून तो बीत चुका है ...:):)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी ! नमन आपको .. संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 03 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3722 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी ! आभार आपका ...
Deleteसही कहा। असली कार्टूनों को तो सहते रहते हैं लोग।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteबहुत बढ़िया👌👌👌
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteसार्थक , प्रभावी , असरदार ... आभार ।
ReplyDeleteजी ! आपका आभार .. रचना/विचार तक आने के लिए ...
Deleteकार्टूनें
ReplyDeleteअनायास आड़ी-तिरछी
रेखाओं का सहज खेलभर नहीं
बहुत बढ़िया लेखन
जी ! आभार आपका ...
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