Sunday, April 5, 2020

मन के मलाल ...


अपनी 22-23 वर्षों की घुमन्तु नौकरी के दौरान हर साल-दर-साल फाल्गुन-चैत्र के महीने में सुबह-सुबह कभी रेलगाड़ी में धनबाद से
बोकारो होते हुए राँची जाने के दरम्यान दौड़ती-भागती रेलगाड़ी के दोनों ओर तो कभी बस में बैठ कर राँची से टाटा या कभी बस से ही कभी टाटा से चाईबासा तो कभी देवघर से दुमका जाते हुए रेलगाड़ी या बस की खिड़की पर अपनी कोहनी टिकाए हुए मन में सप्ताह-पन्द्रह दिनों तक के लिए परिवार वालों से .. अपनों से दूर रहने का दर्द लिए हुए और अजनबी शहरों में अजनबियों के साथ मिल कर काम के लक्ष्य हासिल करने की कई नई योजनाएँ लिए हुए अनेकों बार  पलाश के अनगिनत पत्तियाँविहीन वृक्ष-समूहों पर पलाश, जिसे टेसू भी कहते हैं, के लाल-नारंगी फूलों को निहारने का और इन पर मुग्ध होने का मौका मिला है।

किसी रात राँची से धनबाद लौटते हुए रेलगाड़ी के धनबाद की सीमा रेखा में प्रवेश करते ही वर्षों से झरिया के सुलगते कोयले खदानों से
उठती लपटें नज़र आती और दहकते अंगारों के वृन्द नज़र आते। फिर सुबह के पलाश के फ़ूलों का रंग और रात के दहकते कोयलों का रंग का एक तुलमात्मक बिम्ब बनता था तब मन में। उन 23 सालों का सफ़र और बाद का लगभग 5 साल यानी 28 सालों बाद आज उसे शब्द रूप दे पा रहा हूँ ...तो वे सारे पल चलचित्र की तरह जीवंत हो उठे हैं ...

( वैसे आपको ज्ञात ही होगा कि यह पलाश अपने झारखण्ड का राजकीय फूल है। )

मन के मलाल 
भीतर ही भीतर वर्षों से 
झरिया के सुलगते कोयला खदानों से
उठती लपटें .. दहकते अंगारे
लगता मानो दहक रहे हैं 
पलाश के फूल ढेर सारे
ऊर्ध्वाधर लपटें टह टह लाल हैं उठती 
मानो ऊर्ध्वाधर पंखुड़ियाँ हों पलाश की 
दूर से .. सच में कर पाना 
मुश्किल है अंतर इन दोनों में
ऊर्ध्वाधर लपटों और ऊर्ध्वाधर पंखुड़ियों में
दहकते हैं अनगिनत मन के मलाल 
बन के मशाल इन पलाश के फूलों में ...

मसलन ... कई अनाम प्रेमी-प्रेमिकाओं के
जाति-धर्म या वर्गों के भेद के कारण
घर बसाने के अधूरे रह गए सपने के मलाल
या फिर कई अनाम के बेहतर अंक लाने पर 
अपने कई सहपाठीयों से भी
आरक्षण के हक़दार ना होने के कारण
अच्छे कॉलेज में नामांकन के सपने के मलाल
दिन-रात बहते शहर के नाले जिस नदी में
करते सुबह-शाम तट पर सब गंगा-आरती
उन नदियों की दुर्दशा के मलाल
दहकते हैं अनगिनत मन के मलाल 
बन के मशाल पलाश के फूलों में ...












6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी ! पहले तो नमन आपको और आपका आभार ..

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  2. वाह! आपके मन का मलाल जायज है। बेहद खूबसूरत एवं सार्थक अभिव्यक्ति।

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  3. जी ! नमस्कार ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...

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  4. आपकी कविता ने मेरे मन में सुस्ताते पलामू के पलाश की यादें फिर से ताज़ा कर दी।

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    1. जी ! आभार आपका आपके मन में पलाश की ऊर्ध्वाधर पंखुड़ियों के सुगबुगाने के लिए ...

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