लॉकडाउन की इस अवधि में खंगाले गए धूल फांकते कुछ पुराने पीले पन्नों से :-
(1) :-
सदी को पल में रौंदने वालों ! .. है सवेरा एक .. शाम एक
प्यार का पैगाम एक .. फाल्गुन तो कभी रमज़ान कहते हैं।
ख़ुशी आज़ादी का फहरा कर तिरंगा मनाता है सारा शहर
पर ख़ून से तराबोर सन्नाटे सारे, सारे सच बयान करते हैं।
लुट कर भी ना कोई विरोध , ना लुटेरों से बचने की होड़
शायद मुर्दों की है बस्ती , क्यों नहीं इसे श्मशान कहते हैं।
मुख़बिर है बेचारा तबाह यहाँ , मुज़रिम ही है बना रहनुमा
गर्व से मगर हम सब सदा " मेरा भारत महान " कहते हैं।
(2) :-
है जो पत्थर उसे तो सब यूँ ही यहाँ भगवान कहते हैं
पर पत्थर-दिल इस शहर में अब कहाँ इंसान रहते हैं।
यूँ तो रिश्तों की कतार है गिनाने के लिए लम्बी मगर
बुरे वक्त में ही अक़्सर हम इनकी पहचान करते हैं।
पाठ दुनियादारी का पढ़ाते हैं लोग कुछ इस तरह कि
बेईमानी को चलन में सयाने सब अब ईमान कहते हैं।
सच बोलना सिखाया था यूँ तो बड़ों ने बचपन में मगर
झूठे वादे अक़्सर अपनों के अब यहाँ परेशान करते हैं।
"चँदा मामा दूर के" लोरी गा गाकर माँ थी सुलाती कभी
उतर कर चाँद पर चंद्रयान बच्चों को अब हैरान करते हैं।
( चित्र - गत वर्ष सपरिवार वाराणसी-यात्रा के दौरान गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट के समीप ही मोबाइल के कैमरे से ली हुई है। )
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
जी ! आपको भी सुप्रभात संग कल बीते विश्व धरा दिवस की शुभकामनाएं ... साथ ही आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! सुप्रभात संग नमन आपको और आभार आपका मेरी रचना/विचार को अपने मंच पर साझा करने के लिए ...
Deleteयूँ तो रिश्तों की कतार है गिनाने के लिए लम्बी मगर
ReplyDeleteबुरे वक्त में ही अक़्सर हम इनकी पहचान करते हैं।
बहुत सुंदर सृजन, सुबोध भाई।
जी ! आभार ज्योति बहन !मेरी रचना/विचार तक आने के लिए ...
Deleteइसे तब कई चरणों में लिखा था .. कुछ/भाग-2 तो 1980 के पहले लगभग 14 वर्ष के उम्र में और कुछ/भाग-1 1984 के दंगे के बाद ...
आज भी ये बातें लगती हैं कि बस आजकल की ही बातें हों ...
लुट कर भी ना कोई विरोध , ना लुटेरों से बचने की होड़
ReplyDeleteशायद मुर्दों की है बस्ती , क्यों नहीं इसे श्मशान कहते हैं।
वाह!!!
बहुत ही मार्मिक लाजवाब सृजन।
जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...
Deleteहै जो पत्थर उसे तो सब यूं ही यहां भगवान कहते
ReplyDeleteपर पत्थर दिल इस शहर में अब खान इंसान रहते
मार्मिक सटीक प्रस्तुति
जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ... दरअसल ये पंक्तियाँ ही मेरे मन के करीब है ...
Deleteवाह
ReplyDeleteजी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए
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