Sunday, March 15, 2020

सच्चा दिलदार ...


बना कर दहेज़ की रक़म को आधार
करते हैं सब यूँ तो रिश्तों का व्यापार
वधु-पक्ष ढूँढ़ते जो पाए अच्छी पगार
वर खोजे नयन-नक़्श की तीखी धार
मिलाते जन्मपत्री भी दोनों बारम्बार
मँहगी बारात में मिलते दोनों परिवार
साहिब ! यही पति होता क्या सच में दिलदार ?...

जिसे दहेज़ की ना हो कोई दरकार
चेहरे की सुन्दरता करे जो दरकिनार
उत्तम विचारों को ही करे जो स्वीकार
फिर चाहे जले हो तेज़ाब से रुख़्सार
या कोई वेश्या पायी समाज से दुत्कार **
करे मन से जो निज जीवन में स्वीकार
साहिब ! वही है ना शायद एक सच्चा दिलदार ?...

** - परित्यक्ता हो कोई या किए गए हों बलात्कार






12 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बड़ी मुश्किल से मयस्सर होते हैं जहाँ में ऐसे बरखुरदार!
    इन उम्दा खयालातों का आभार।

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    1. रचना तक आने के लिए तहेदिल से आपकी शुक्रिया सरकार !!!...

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  3. सुबोध भाई, ऐसे सच्चे दिलदार मिलना बहुत ही मुश्किल हैं।

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    1. ज्योति बहन ! मुश्किल है .. पर नामुमकिन नहीं ... वैसे भी कोयले के खान में हीरा और युगों में आइन्स्टाइन या सुकरात कम ही मिलते या पैदा होते हैं ... काश! .....

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  4. वाह!!आपकी सोच को नमन 👍

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    1. जी ! आपको भी मेरा नमन और आभार आपका रचना तक आने के लिए ...

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  5. Replies
    1. जी ! नमन आपको और आभार आपका रचना के मर्म तक आकर रचना/विचार का मान बढ़ाने के लिए ...

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  6. हर एक को ऐसे ही सच्चे दिलदार की खवाहिश होती हैं ,सुंदर सोच और बेहतरीन सृजन ,सादर नमन आपको

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