Thursday, February 20, 2020

मुखौटा (लघुकथा).


14 फ़रवरी, 2020 को रात के लगभग पौने नौ बज रहे थे। पैंतालीस वर्षीय सक्सेना जी भोजन तैयार होने की प्रतीक्षा में बस यूँ ही अपने शयन-कक्ष के बिस्तर पर अधलेटे-से गाव-तकिया के सहारे टिक कर अपने 'स्मार्ट मोबाइल फ़ोन' में 'फेसबुक' पर पुलवामा के शहीदों की बरसी पर श्रद्धांजलि-सन्देश प्रेषित कर स्वयं के एक जिम्मेवार भारतीय नागरिक होने का परिचय देने में तल्लीन थे।
तभी 'मोबाइल' में किसी 'व्हाट्सएप्प' की 'नोटिफिकेशन-ट्यून्' बजते ही वे 'फेसबुक' से 'व्हाट्सएप्प' पर कूद पड़े। कई साहित्यिक 'व्हाट्सएप्प ग्रुप' में से, जिनके वे सदस्य थे, एक 'ग्रुप' में एक 'मेसेज' दिखा - " एक दुःखद समाचार - मिश्रा जी के ससुर जी गुजर गए। "
तत्क्षण उन्होंने भी अपनी तत्परता दिखाते हुए शोक प्रगट किया -
"  ओह, दुःखद । मन बहुत ही व्यथित हुआ। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें । "
इधर उनकी यंत्रवत शोक-प्रतिक्रिया पूर्ण हुई और संयोगवश उसी वक्त चौके से उनकी धर्मपत्नी की आवाज़ आई - " आइए जी बाहर .. खाना लगा रहे हैं। टी वी भी चालू कर दिए हैं। पिछले साल का पुलवामा वाला दिखा रहा है। आइए ना ... "
" आ गए भाग्यवान ! बस खाना खाने से पहले वाली 'शुगर' की दवा तो खा लेने दो।" फिर वाश-बेसिन में 'लिक्विड-शॉप' से हाथ धोते हुए बोले -" वैसे 'जिंजर-लेमन' तंदूरी 'चिकेन' की बड़ी अच्छी ख़ुश्बू आ रही है तुम्हारे 'किचेन' से .. आज एक -दो रोटी ज्यादा बना ली हो ना ? "
" हाँ जी! ये भी कहने की बात है क्या ? " - लाड़ जता कर बोलते हुए धर्मपत्नी चौके से अपने दोनों हाथों में दो थालियों में खाना लिए निकलीं .. एक सक्सेना जी के लिए और दूसरी अपने लिए। रात का भोजन प्रायः दोनों साथ ही करते हैं।
'डाइनिंग हॉल' अब तक दोनों के ठहाके और गर्मागर्म मुर्गे-रोटी की सोंधी ख़ुश्बू से महमह करने लगा था।



20 comments:

  1. आज के मशीनी युग का सत्य
    सटीक चित्रण

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    1. जी ! मशीनी या दिखावे की दुनिया कह सकते हैं हम ... आभार आपका ...

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  2. चेहरे पे नया चेहरा लगा लेतें हैं लोग! यथार्थ को दर्शाती रचना

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    1. "समानुभूति" तो दूर "सहानुभूति" में भी दिखावा ... दुःख केवल शब्दों में ..एहसास लेशमात्र भी नहीं .. दिखावा से मन कुढ़ता है ..बस ..

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 21 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. नमन आपको और संग आभार आपका यशोदा जी !...

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    2. 21 फरवरी को 20 फरवरी पढ़ें
      सादर

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  4. वाह!!बहुत खूब ,सुबोध जी । आज का सच यही है ,हर तरफ दिखावा ही दिखावा है चाहे मृत्यु हो या जनम ।

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  5. जी ! आभार आपका ... कैंडल-मार्च में भी दिखावा ...

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  6. अब हमें श्रद्धधांजलि संदेश भेजने का दिखावा बंद कर ही देना चाहिए। सच क्या है, ये सब जानते हैं।

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  7. अब तो रिश्ते व्हाट्सएप पर ही निभाए जा रहे हैं....सुखद या दुखद समाचार सुनकर बस यूँ ही मेसेज के जरिये शब्दों से ही साथ निभ रहा है....आज का कटु सत्य बतलाता लाजवाब सृजन

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-१९ 'मुखौटा'(चर्चा अंक-३६९०) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  9. सोशलमीडिया के रिश्ते ऐसे ही होते हैं ,सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन

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    1. जी! पर सोशल मीडिया को ऑपरेट करने वाले इंसान ही होते हैं ... काश ! सभी इंसान पारदर्शी होते ...

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  10. कोरा दिखावे का शोक और झूठी शाब्दिक संवेदना ! आज के इंसान का शायद यही चरित्र तथार्थ है !

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    1. जी ! इन कोरी शाब्दिक संवेदना से मन कुंहकता है ...

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