Friday, February 14, 2020

तलाशो ना जरा वसंत को ...

रंग चुके हैं अब तक मिलकर हम ने सभी
कई-कई कागजी पन्ने नाम पर वसंत के
'वेब-पेजों' को भी सजाए हैं कई-कई
आभासी दुनिया के 'सोशल मिडिया' वाले
गए भी खेतों में अगर कभी सरसों के
कोई भी हम में से .. मिली फ़ुर्सत जब जिसे
रही तब भी ध्यान कम फूलों पर सरसों के
रही ज्यादा अपनी 'सेल्फ़ियों' पर ही हम सब के
आओ ना ! मिल कर तलाशो ना जरा वसंत को 
जो 'वेलेंटाइन डे' में है अब शायद खो रही ...

कविताओं, कहानियों और गीतों में हम
शब्दकोश के चुराए शब्दों से अक़्सर
शब्दचित्र भर वसंत के हम इधर गढ़ते रहे
होते गए अनभिज्ञ उधर युवा भी सारे
मनमोहक, मादक, महुआ के सुगंध से
खोती भी गई कोयल की मीठी तरंगों वाली कूकें
कानफाड़ू 'डी. जे'. में 'कैफेटेरिया' .. 'रेस्तराओं' के
और .. बसन्ती बयार वातानुकूलित बहुमंजिली 'मॉलों' में
आओ ना ! मिल कर तलाशो ना जरा वसंत को 
जो 'वेलेंटाइन डे' में है अब शायद खो रही ...

माघ, फाल्गुन, चैत्र .. तीन माह वाली अपनी वसंत
खा रही है शायद अब तो साल-दर-साल मात 
सात दिनों वाले 'वैलेंटाइन डे' के बाज़ारीकरण से
मिठास मधु जैसी मधुमास की तो खो रही 'चॉकलेट डे' में
सरसों, सूरजमुखी, शिरीष, आम की मंजरियाँ, टेसू प्यारे
गुलदाउदी, गेंदा, डहेलिया, कमल, साल्विया ... सारे के सारे
सब खो रहे हो कर बोझिल 'रोज़ डे' के बाज़ारवाद में
मनुहार रूमानी मशग़ूल हो .. खो गई 'प्रोपोज़ डे' में
आओ ना ! मिल कर तलाशो ना जरा वसंत को 
जो 'वेलेंटाइन डे' में है अब शायद खो रही ...


4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना, सुबोध भाई।

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    1. जी ! आभार आपका ज्योति बहन ...

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. नमन आपको और पुनः आभार आपका रचना/विचार को मंच पर साझा कर के ज्यादा लोगों तक पँहुचाने के लिए ...

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