अम्मा !
सुना है दुनिया वालों से हमेशा कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
क्यों लगाती हो मुझे भला फिर
तुम काजल का टीका कि ..
लग जाएगी मुझे ज़माने की नज़र
और काम भी क्या उस
मूरत का भी जो भला
मूक रहता है, आता है
जब-जब भी क़ुदरत का क़हर ...
माना ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
तो बतलाओ ना भला फिर
सफ़दर की अम्मी की दुआ उस
पहली जनवरी को हो गई थी क्या
अपाहिज़ या फिर अंजान .. बेखबर
या उस दिन निर्भया की माँ और ..
आसिफा की अम्मी की दुआ
हो गई थी क्या निकम्मी या
फिर हो गई थी बेअसर ...
बोलो ना अम्मा !
मान लूँ कैसे भला कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
भगत सिंह जैसे शहीदों की
माँओं की दुआएँ क्या
भटक गई थीं राहें या
थीं उनकी दुआएँ ही कमतर
हरएक गुलामों की ग़ुलाम माँओं का जीवन
जीने हेतु ही तथाकथित विधाता ने
बनाया ही है क्या बद से बदतर ...
अम्मा !
बतलाओ ना जरा
ये कैसी है दुआ ..
ये कैसा है विधाता ...
जो कभी अनदेखी है करता ..
तो कभी मुँहदेखी है करता..
दोनों ही बतलाते है धत्ता बारहा
और .. साथ देते हैं सदैव इनका
देखा है .. पंडित और मुल्ला यहाँ
पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का
बुरा फल बतला कर अक़्सर ...
सुना है दुनिया वालों से हमेशा कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
क्यों लगाती हो मुझे भला फिर
तुम काजल का टीका कि ..
लग जाएगी मुझे ज़माने की नज़र
और काम भी क्या उस
मूरत का भी जो भला
मूक रहता है, आता है
जब-जब भी क़ुदरत का क़हर ...
माना ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
तो बतलाओ ना भला फिर
सफ़दर की अम्मी की दुआ उस
पहली जनवरी को हो गई थी क्या
अपाहिज़ या फिर अंजान .. बेखबर
या उस दिन निर्भया की माँ और ..
आसिफा की अम्मी की दुआ
हो गई थी क्या निकम्मी या
फिर हो गई थी बेअसर ...
बोलो ना अम्मा !
मान लूँ कैसे भला कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
भगत सिंह जैसे शहीदों की
माँओं की दुआएँ क्या
भटक गई थीं राहें या
थीं उनकी दुआएँ ही कमतर
हरएक गुलामों की ग़ुलाम माँओं का जीवन
जीने हेतु ही तथाकथित विधाता ने
बनाया ही है क्या बद से बदतर ...
अम्मा !
बतलाओ ना जरा
ये कैसी है दुआ ..
ये कैसा है विधाता ...
जो कभी अनदेखी है करता ..
तो कभी मुँहदेखी है करता..
दोनों ही बतलाते है धत्ता बारहा
और .. साथ देते हैं सदैव इनका
देखा है .. पंडित और मुल्ला यहाँ
पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का
बुरा फल बतला कर अक़्सर ...
सुन्दर और गंभीर प्रश्न उठाती रचना। यह गम अपनी माँ से न कहें तो किसे कहें । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
ReplyDeleteसादर नमन आपको और बहुत-बहुत आभार आपका मेरी रचना तक आने के लिए और आपकी शुभकामनाओं के लिए ... क़ुदरत हर पल आपके साथ सकारात्मक रहे ...
Deleteसचमुच ऐसी घटनाएं प्रभुसत्ता पर प्रश्न चिह्न ही लगाती हैं....
ReplyDeleteजब दुआएं बेअसर होती हैं तो विश्वास चकनाचूर हो जाता है
बहुत सुन्दर रचना
लाजवाब
आपका बहुत-बहुत आभार सुधा जी मेरी रचना तक आने के लिए ...
Deleteवाह!!बहुत खूब !!सच ही तो है ,कभी -कभी दुआएं भी बेअसर हो जाती हैं ...
ReplyDeleteआभार आपका रचना/सोच तक आने के लिए ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते ! बहुत-बहुत आभार आपका ! पर ३ जनवरी २०२० या ६ जनवरी २०२० को ?
Deleteत्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।🙏
Deleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी! पुनः आभार आपका .. वैसे .. क्षमाप्रार्थी जैसा शब्द व्यवहार में लाकर शर्मिन्दा मत कीजिए .. आपने तो रचना को मान दिया है .. बस यूँ ही .. आपकी भूल को इंगित किया भर ..
Delete"...
ReplyDeleteअम्मा !
बतलाओ ना जरा
ये कैसी है दुआ ..
ये कैसा है विधाता ...
जो कभी अनदेखी है करता ..
तो कभी मुँहदेखी है करता.."
वाह!! अद्भुत। एक-एक पंक्ति सत्य के करीब ले जा रही है। बहुत बेहतरीन लेखनी। वाकई बहुत अच्छा लगा पढकर।
"...
अम्मा !
सुना है दुनिया वालों से हमेशा कि ..
है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर
क्यों लगाती हो मुझे भला फिर
तुम काजल का टीका कि ..
लग जाएगी मुझे ज़माने की नज़र
..."
आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए और साथ ही वाकई अच्छा लगने के लिए भी ...
ReplyDeleteभावपूर्ण और प्रभावी रचना
ReplyDeleteआभार आपका ...
Deleteजब दुआएं बेअसर होती हैं तो विश्वास चकनाचूर हो जाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गंभीर प्रश्न उठाती रचना।
बहुत ही मासूमियत भरे सवाल जो मन को अनायास भावुक कर गये !!!!!!!!!!!!
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