Saturday, November 23, 2019

पूछ रही है बिटिया ...

क ख ग घ ... ए बी सी डी ..
सब तो आपने मुझ बिटिया को
बहुत पढ़वाया ना पापा ?
अब "एक्स-वाई" भी तो
समझा दो ना पापा !
अगर भईया बना "वाई" से
वंश-बेल माना आपका
पर मुझ बिटिया में भी तो
है ही ना "एक्स" आपका
फिर मुझ से तथाकथित
मोक्ष क्यों नहीं पापा !???
पूछ रही है बिटिया ...

गुड्डा-गुड़िया .. कुल्हिया-चुकिया ..
सब खेल चुके ..
अब तो हवाई-जहाज भी
उड़ाने दो ना पापा !
मुझ बिटिया को समझते क्यों
"बोझ" और "कमजोर" भला
हम जबकि सृष्टि रचयिता
नौ माह तक बोझ उठाती
नौ माह क्या .. नौ दिन भी नहीं ..
बस नौ मिनट तक ही
सम्भाल सके कोई भी नर
कोख़ और प्रसव-पीड़ा
है क्या आपकी नज़र में
कोई ऐसा .. बोलो ना पापा !...
पूछ रही है बिटिया ...

"लक्ष्मी आई - लक्ष्मी आई"
उदास मन से कहते हैं सब ना !?
बिटिया सुख देती तो है पर 
दुःखी करता दहेज़ सहेजना
अगर बिटिया की क़िस्मत जो फूटी
सरेराह उसकी इज्ज़त जो लुटी
शुरू कर देते क्यों सगे सारे
उस बिटिया से कतराना
दहेज़ के लोभी .. तन के भोगी
सब तो हैं नर ही सारे
तो फिर भला किसी बिटिया की
माँ के कोख़ में ही कर देते
भ्रूण-हत्या क्यों पापा !???...
पूछ रही है बिटिया ...

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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    1. जी ! पर काश ! इस रचना के साथ-साथ हम सभी समाज में कुछ जमीनी परिवर्त्तन भी ला पाते ...

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  3. वाह!!बहुत सुंदर ,दिल को छू गई आपकी रचना👌

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    1. काश ! समाज की सड़ी मानसिकता को भी इसकी आँच सुलगा पाती ...

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