"तंजानिया" के "ज़ांज़ीबार" में
मजबूर ग़ुलामों से कभी
सजने वाले बाज़ार
सजते हैं आज भी कई-कई बार
कई घरों के आँगनों में,
चौकाघरों में, बंद कमरों में,
बिस्तरों पर, दफ्तरों में ...
गुलामों को बांझ बनाने की तरह
बनाई जाती है बांझ बारहा
उनकी सोचों को, सपनों को,
चाहतों को, संवेदनाओं को,
शौकों को, उमंगों को ...
पर गाहे बगाहे इनमें से कई
अपने मन के झील में
बना कर अपनी भावनाओं का
एक प्यारा-सा घर अलग
बसा लेती हैं
यथार्थ के खरीदारों की
नज़रों से ओझल
एक सुरक्षित दुनिया
ठीक झील में बसे एक गाँव ...
उस अफ़्रीकी "बेनिन" की तरह ...
"वेनिस ऑफ़ अफ्रीका" की तरह ...
मजबूर ग़ुलामों से कभी
सजने वाले बाज़ार
सजते हैं आज भी कई-कई बार
कई घरों के आँगनों में,
चौकाघरों में, बंद कमरों में,
बिस्तरों पर, दफ्तरों में ...
गुलामों को बांझ बनाने की तरह
बनाई जाती है बांझ बारहा
उनकी सोचों को, सपनों को,
चाहतों को, संवेदनाओं को,
शौकों को, उमंगों को ...
पर गाहे बगाहे इनमें से कई
अपने मन के झील में
बना कर अपनी भावनाओं का
एक प्यारा-सा घर अलग
बसा लेती हैं
यथार्थ के खरीदारों की
नज़रों से ओझल
एक सुरक्षित दुनिया
ठीक झील में बसे एक गाँव ...
उस अफ़्रीकी "बेनिन" की तरह ...
"वेनिस ऑफ़ अफ्रीका" की तरह ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअद्भुत बिंब गढ़े है आपने चमत्कृत करते बारिश की पहली बूँद की तरह सोंधी खुशबू लिये से मोहक शब्दों में गूँथी सुंदर अप्रतिम बेहद मर्मस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना।
रचना की प्रसंशा के लिए हार्दिक आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना को एक स्थापित ब्लॉग में साझा करने के लिए हार्दिक आभार आपका ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
अनीता सैनी जी आभार आपका दो बातों के लिए ... एक तो मेरी रचना बहुत दिनों बाद पसंद आने के लिए और दूसरी मेरी रचना को साझा करने के लिए ..
Delete(विशेष :- शायद मेरी तकनिकी जानकारी की कमी की वजह से चर्चा मंच पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा हूँ । मैं आप से और/या शास्त्री जी से भी अनुरोध करता हूँ कि कृपया तरीका सुझाएं, ताकि मैं अपने मन का उल्लास वहाँ लिख सकूँ प्रतिक्रियास्वरूप। )
बेहतरीन ,ह्रदयस्पर्शी ,सुंदर रचना ,नमस्कार ,बधाई हो आपको
ReplyDeleteनमस्कार ! इतने सारे विशेषणों के गहना से रचना को सजाने के लिए आभार आपका ...
Deleteगुलामी और मज़बूरी से जूझते जीवन में भी एक भावों से भरा मन होता है | देह बंदिशों की परिधि में आती है मन नहीं | उसे कहीं ही सपनों का संसार सजाने में कहाँ देर लगती है ? सुंदर बिम्बों से सजी रचना |
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका यथोचित विश्लेषण के लिए ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी आभार आपका !
Deleteमजदूरों से उनकी उम्मीदें, उमंगे और सपने छीन कर दिए जाते हैं काम और कम मजदूरी।
ReplyDeleteलेकिन हमेशा हरी रहती है।
जो सपनों के महल हकीकत में बनवा देती है।
बहुत खूबसूरत रचना।
जी ! आभार आपका .. बिल्कुल सही कहा आपने ...
Deleteसबसे अलग और मौलिक।
ReplyDeleteगुलाम हों या मजदूर, हैं तो इंसान ही। मन को बेड़ियों में जकड़ा नहीं जा सकता।
जी ! आभार आपका ... सही , मन तो किसी का ग़ुलाम नहीं होता ...
Deleteसपने यदि सुविधाओं के मोहताज होते तो सिर्फ टाटा बिरला के घर ही पलते | पर नहीं -- प्रेमपोषित ह्रदय वीराने में भी सपनों के महल सजा लेता है वो भी खाली हाथ |अच्छा लगा आज आपकी ये रचना दुबारा पढ़कर शुभकामनाएं सुबोध जी |
ReplyDeleteजी ! रेणु जी ! आभार आपका आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के लिए ...
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