(1)**
शेख़ी बघारता दिनभर
किसी जेठ-सा सूरज
हो जाएगा जब ओट में
शाम के मटमैले चादर के
आएगी तब नववधू-सी रात
जुगनूओं के टाँके लगे
काले परिधानों में हौले-हौले
दिखेगी दूर सामने ओसारे में
चूती ओलती के झालर के पार
मदमाती , गुनगुनाती मदालसा-सी
झिंगूरों और मेढ़कों की
युगलबंदी के लय के साथ
और देने को साथ
उस रूमानी पल का
थिरकेंगे मचलते बच्चों-सी
हम-तुम सारी रात
सुबह जेठ सूरज के
कॉल-बेल बजाने तक ....
(2)**
सुनो ना !!!
एक शिकायत
आज सुबह-सुबह
शहद की शीशी की
कि ....
तुम्हारी एक जोड़ी
आँखों की पुतलियों ने
चुराए हैं उसके रंग
और शायद ...
मिठास भी
तभी तो पलने वाले
आँखों में तुम्हारी
हर सपने भी होते हैं
शहद-से मीठे ...
अब बोलो ना जरा ...
उन से क्या कहें भला !!!?....
शेख़ी बघारता दिनभर
किसी जेठ-सा सूरज
हो जाएगा जब ओट में
शाम के मटमैले चादर के
आएगी तब नववधू-सी रात
जुगनूओं के टाँके लगे
काले परिधानों में हौले-हौले
दिखेगी दूर सामने ओसारे में
चूती ओलती के झालर के पार
मदमाती , गुनगुनाती मदालसा-सी
झिंगूरों और मेढ़कों की
युगलबंदी के लय के साथ
और देने को साथ
उस रूमानी पल का
थिरकेंगे मचलते बच्चों-सी
हम-तुम सारी रात
सुबह जेठ सूरज के
कॉल-बेल बजाने तक ....
(2)**
सुनो ना !!!
एक शिकायत
आज सुबह-सुबह
शहद की शीशी की
कि ....
तुम्हारी एक जोड़ी
आँखों की पुतलियों ने
चुराए हैं उसके रंग
और शायद ...
मिठास भी
तभी तो पलने वाले
आँखों में तुम्हारी
हर सपने भी होते हैं
शहद-से मीठे ...
अब बोलो ना जरा ...
उन से क्या कहें भला !!!?....
वाह.....
ReplyDeleteक्या कहने
बेजोड़ सृजन
शुक्रिया भाई !
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 14 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते !
Deleteसाभार आपका मेरी रचना को कल के अंक में साझा कर के मान देने के लिए ...
बस यूं ही... चन्द पंक्तियाँ - अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं अपनी सम्पूर्णता के साथ ।
ReplyDeleteबस यूँ ही ... आप सभी मेरी चन्द-पंक्तियों में सम्पूर्णता का अहसास करते रहिए ... आभार आपका ...
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन सर
ReplyDeleteसादर
आपकी सराहना ऊर्जावान बनाती है। आभार आपका ....
Deleteवाह बहुत खूबसूरत भाव व एहसास उम्दा सृजन ।
ReplyDeleteसराहना के लिए शुक्रिया !
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
लाजवाब सृजन।
सराहना के लिए शुक्रिया !
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