बंजारा बस्ती के बाशिंदे
Saturday, August 3, 2019

मेरे मन की मेंहदी

›
माना मेरे मन की मेंहदी के रोम-रोम ... पोर-पोर ...रेशा-रेशा ... हर ओर-छोर मिटा दूँ तुम्हारी .... च्...च् ..धत् ... शब्द "मिटा दूँ...
20 comments:
Friday, August 2, 2019

छितराया- बिखरा निवाला

›
अक्षत् ... हाँ ... पता है .. ये परिचय का मोहताज़ नहीं जो होता तो है आम अरवा चावल पर तथाकथित श्रद्धा-संस्कृति का ओढ़े घूँघट बना दिया जाता ...
12 comments:
Sunday, July 28, 2019

काले घोड़े की नाल

›
" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ...   जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला " " हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेल...
22 comments:

मज़दूर

›
गर्मी में तपती दुपहरी के चिलचिलाते तीखे धूप से कारिआए हुए तन के बर्त्तन में कभी औंटते हो अपना खून और बनाते हो समृद्धि की गाढ़ी-गाढ़ी राब...
10 comments:

अपना ...

›
अपना हाँ, हाँ ..... अपना अपना तो कोई व्यक्ति-विशेष तो होता नहीं, जो दे दे स्नेह, प्रेम, श्रद्धा निस्वार्थ बस यूँ हीं लगता तो है अपन...

आत्मसमर्पण ...

›
सुगंध लुटाते, मुस्कुराते, लुभाते, बलखाते, बहुरंग बिखेरे, खिलते हैं यहाँ सुमन बहुतेरे, नर्म-नर्म गुनगुने धूप में जीवन के यौवन-वसंत में ।...
Saturday, July 27, 2019

दोषी मैं कब भला !? - सिगरेट

›
साहिब ! मुझ सिगरेट को कोसते क्यों हो भला ? समाज से तिरस्कृत ... बहिष्कृत ... एक मजबूर की तरह जिसे दुत्कारते हो चालू औरत या कोठेवाली की...
12 comments:
‹
›
Home
View web version

About Me

My photo
Subodh Sinha
आम नागरिक, एक इंसान बनने की कोशिश
View my complete profile
Powered by Blogger.