Saturday, August 3, 2019
मेरे मन की मेंहदी
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माना मेरे मन की मेंहदी के रोम-रोम ... पोर-पोर ...रेशा-रेशा ... हर ओर-छोर मिटा दूँ तुम्हारी .... च्...च् ..धत् ... शब्द "मिटा दूँ&qu...
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Friday, August 2, 2019
छितराया- बिखरा निवाला
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अक्षत् ... हाँ ... पता है .. ये परिचय का मोहताज़ नहीं जो होता तो है आम अरवा चावल पर तथाकथित श्रद्धा-संस्कृति का ओढ़े घूँघट बना दिया जाता ...
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Sunday, July 28, 2019
काले घोड़े की नाल
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" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ... जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला " " हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेल...
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मज़दूर
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गर्मी में तपती दुपहरी के चिलचिलाते तीखे धूप से कारिआए हुए तन के बर्त्तन में कभी औंटते हो अपना खून और बनाते हो समृद्धि की गाढ़ी-गाढ़ी राब...
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अपना ...
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अपना हाँ, हाँ ..... अपना अपना तो कोई व्यक्ति-विशेष तो होता नहीं, जो दे दे स्नेह, प्रेम, श्रद्धा निस्वार्थ बस यूँ हीं लगता तो है अपन...
आत्मसमर्पण ...
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सुगंध लुटाते, मुस्कुराते, लुभाते, बलखाते, बहुरंग बिखेरे, खिलते हैं यहाँ सुमन बहुतेरे, नर्म-नर्म गुनगुने धूप में जीवन के यौवन-वसंत में ।...
Saturday, July 27, 2019
दोषी मैं कब भला !? - सिगरेट
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साहिब ! मुझ सिगरेट को कोसते क्यों हो भला ? समाज से तिरस्कृत ... बहिष्कृत ... एक मजबूर की तरह जिसे दुत्कारते हो चालू औरत या कोठेवाली की...
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