Saturday, July 27, 2019
दोषी मैं कब भला !? - सिगरेट
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साहिब ! मुझ सिगरेट को कोसते क्यों हो भला ? समाज से तिरस्कृत ... बहिष्कृत ... एक मजबूर की तरह जिसे दुत्कारते हो चालू औरत या कोठेवाली की...
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Tuesday, July 23, 2019
ट्रैक्टर : ज़िंदगी की ...
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धान के बिचड़े सरीखे कर ठिकाना परिवर्त्तन मालूम नहीं सदियों पहले कब और कहाँ से लाँघ आए थे गाँव की पगडंडियों को पुरखे मेरे किसी शहर की ए...
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मन का आरोही-अवरोही विज्ञान
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विज्ञान का ज्ञान हमारा मूलभूत जीवन-आधार है अवरोही क्रम में प्राण-वायु (ऑक्सीजन) , जल और भोजन .. प्राण- वायु ... रंगहीन, गंधहीन, स्वादह...
Sunday, July 21, 2019
स्वप्निल यात्रा ...
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किसी दिन उतरेंगे हम-तुम अपनी ढलती उम्र-सी गंगाघाट की सीढ़ियों से एक दूसरे को थामे .. गुनगुनाते " छू-कित्-कित् " वाले अंदाज़ में...
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चन्द पंक्तियाँ - (६)- बस यूँ ही ....
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(१)# तुम साँकल बन दरवाज़े पर स्पंदनहीन लटकती रहना मैं बन झोंका पुरवाईया का स्पंदित करने आऊँगा... (२)# चलो .... माना है तुम्हा...
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मन का सूप
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कोमल भावनाओं और रूमानी अहसासों की आड़ी-तिरछी कमाचियों से बुना सूप तुम्हारे मन का गह के ओट में जिसके अनवरत अटका हुआ है हुलकता हर पल ब...
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Wednesday, July 17, 2019
वहम
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एक किसी दिन आधी रात को एक अजनबी शहर से अपने शहर और फिर शहर से घर तक की दूरी तय करते हुए सारे रास्ते गोलार्द्ध चाँद आकाश के गोद से न...
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