था सुनता आया बचपन से
अक़्सर .. बस यूँ ही ...
गाने कई और कविताएँ भी
जिनमें ज़िक्र की गई थी कि
गाती है कोयलिया
और नाचती है मोरनी भी
पर सच में था ऐसा नहीं ...
गाता है नर-कोयल .. है यही सही
नाचता है सावन में नर-मोर भी
यत्न करते हैं हो प्रेम-मदसिक्त दोनों ही
रिझाने की ख़ातिर अपनी ओर
बस मादाएँ अपनी-अपनी
रचा सके मिलकर ताकि
सृष्टि की एक नई कड़ी ...
जान कर ये बातें बारहा
एक ऊहापोह है तड़पाता
छा जाती मुझ पर उदासी और ..
अनायास आता है एक ख़्याल
पूछता हूँ खुद से खुद सवाल ..
अरे ! ... नहीं आता गाना मुझे
और ना ही मुझे नाचना भी
अब .. रिझाउँगा उन्हें मैं कैसे
कैसे उन्हें मैं भला भाऊँगा भी
चाहता हूँ मन से केवल उनको ही
इतना ही पर्याप्त भला नहीं क्या !? ..
एक बार तनिक .. वे बतलातीं भी ...
अक़्सर .. बस यूँ ही ...
गाने कई और कविताएँ भी
जिनमें ज़िक्र की गई थी कि
गाती है कोयलिया
और नाचती है मोरनी भी
पर सच में था ऐसा नहीं ...
गाता है नर-कोयल .. है यही सही
नाचता है सावन में नर-मोर भी
यत्न करते हैं हो प्रेम-मदसिक्त दोनों ही
रिझाने की ख़ातिर अपनी ओर
बस मादाएँ अपनी-अपनी
रचा सके मिलकर ताकि
सृष्टि की एक नई कड़ी ...
जान कर ये बातें बारहा
एक ऊहापोह है तड़पाता
छा जाती मुझ पर उदासी और ..
अनायास आता है एक ख़्याल
पूछता हूँ खुद से खुद सवाल ..
अरे ! ... नहीं आता गाना मुझे
और ना ही मुझे नाचना भी
अब .. रिझाउँगा उन्हें मैं कैसे
कैसे उन्हें मैं भला भाऊँगा भी
चाहता हूँ मन से केवल उनको ही
इतना ही पर्याप्त भला नहीं क्या !? ..
एक बार तनिक .. वे बतलातीं भी ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteसुबोध भाई, सच्चे प्यार में यह नहीं देखा जाता कि प्रेमी को नाचना गाना आता हैं या नहीं। फिर भी मोर और कोयल के उदाहरण से ऐसा ख्याल मैन में आ सकता हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी !ज्योति बहन !आभार आपका रचना तक आने और प्रतिक्रिया के लिए ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन आपको और आभार आपका ...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-12-2019) को "आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास" (चर्चा अंक-3553) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी ! नमन आपको और आभार आपका ...
Deleteअब रिझाउँगा उन्हें मैं कैसे
ReplyDeleteकैसे उन्हें मैं भला भाऊँगा भी
एक अनुराग भरे प्रेमी का मासुमियत भरा सवाल, बिना ये जाने कि प्रेम बिना किसी शब्दप्रपंच और दिखावे की कला से कोसों दूर एक आत्मीयता भरी अनुभूति है। बस यूँ ही सी उहापोह भरी भावपूर्ण रचना , सुबोध जी,जो आपकी मौलिक शैली की विशेष पहचान है।👌👌👌👌👌👌
रेणु जी ! आभार आपका रचना तक आने और रचना की प्रसंशा कर के उत्साहवर्द्धन के लिए ...
Deleteगाता है नर-कोयल .. है यही सही
ReplyDeleteनाचता है सावन में नर-मोर भी
यत्न करते हैं हो प्रेम-मदसिक्त दोनों ही
रिझाने की ख़ातिर अपनी ओर
बस मादाएँ अपनी-अपनी
रचा सके मिलकर ताकि
सृष्टि की एक नई कड़ी ...बहुत ही सुदर रचना , अद्भुत
जी ! आभार आपका रचना तक आने के लिए ...
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