मन का सूप
कोमल भावनाओं और
रूमानी अहसासों की
आड़ी-तिरछी कमाचियों से
बुना सूप तुम्हारे मन का
गह के ओट में जिसके
अनवरत अटका हुआ है
हुलकता हर पल
बनारसी राई मेरे मन का
फटको-झटको लाख तुम
अपने मन का सूप
पर है अटका रहने वाला
बनारसी राई मेरे मन का
ताउम्र ......
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 23, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमन से शुक्रिया यशोदा जी !
Deleteबड़ी खूबसूरती से रचा है
ReplyDeleteशुक्रिया आपका ख़ूबसूरती महसूस करने के लिए ...
Deleteवाह !बहुत सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteसादर
अनीता जी हृदयतल (ब्लॉग की दुनिया की भाषा में ) शुक्रिया आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
सराहना के लिए शुक्रिया आपका ...
Deleteवाह सूप भी प्रतीक हो सकता है, ये आज जाना आदरणीय सुबोध जी। 👌👌👌👌स्नेहासिक्त भावों से सजी रचना। सादर
ReplyDeleteरेणु जी ब्रह्माण्ड के हर कण में प्रतीक है। बस आपकी नज़र (सोच) किस में क्या बिम्ब देख पाती है ... आप पर निर्भर करता है ... है ना !?☺
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