औरतें चौकों में खाना सिंझाती
मात दे जाती हैं अक़्सर ....
सर्कस में रस्सी पर संतुलन बना कर
चलने वाले कलाकार को भी
जब .... डालती हैं वे हर शाम
खाने में संतुलित नमक और
गुंथते आटे में संतुलित पानी
जब कभी पकाती हैं कोई व्यंजन
पढ़ कर कोई एक व्यंजन -विधि
किसी पत्रिका में या फिर
किसी पाक-कला की किताब
ख़ुश करने के लिए किसी अपने को
तो ... पढ़ती हैं जब अक़्सर किसी भी
व्यंजन के लिए दिए गए
सामग्रीयों का एक निश्चित माप
मसलन ... बेसन - 150 ग्राम,
प्याज - चार मंझोले माप के( कतरे हुए),
लहसुन - चार कली, हरी मिर्ची - 4 या 5..
इत्यादि - इत्यादि ... वगैरह - वगैरह ....
पर रहता है लिखा प्रायः हर बार
नमक - "स्वादानुसार" और ....
विधि अनुसार हो जाता है
किसी प्रिय के लिए सुस्वादु व्यंजन तैयार
फिर परोसा जाता है मन में लिए ये आस
कि व्यंजन के प्रिय के जीभ पर तैरते ही
तैरेंगे हवा में उसके लिए प्रिय के मुँह से
प्रसंशा के दो-चार बोल ... जो ...
सारे दिन के थकान को बदल देगी पल में
"आह से अहा" तक वाले 'मूव' के
बाजारीकरण करते क़ीमती
विज्ञापन की तरह
पर मन में एक सवाल भी कौंधता है समानान्तर
शायद बार-बार या अक़्सर ...
कि ... व्यंजन- सामग्रियों की मानिंद होती
भले हर चीज़ नापी-तौली जीवन में ...
मसलन ....नक़द दहेज़ की रक़म - 20 लाख
गहना - 20 तोले, एक अदद कार - आयातित,
250 बारातियों का पांचसितारा होटल में स्वागत
ना एक कम ... ना एक ज्यादा...
चुटकी भर सिन्दूर, फेरे - सात ....
इत्यादि- इत्यादि ... वगैरह - वगैरह...
पर ...... !!!!....????......
काश ! "उनका" प्यार मिल पाता
जीवन भर अपनी "इच्छानुसार"
जैसे व्यंजन में नमक ... "स्वादानुसार" .....
मात दे जाती हैं अक़्सर ....
सर्कस में रस्सी पर संतुलन बना कर
चलने वाले कलाकार को भी
जब .... डालती हैं वे हर शाम
खाने में संतुलित नमक और
गुंथते आटे में संतुलित पानी
जब कभी पकाती हैं कोई व्यंजन
पढ़ कर कोई एक व्यंजन -विधि
किसी पत्रिका में या फिर
किसी पाक-कला की किताब
ख़ुश करने के लिए किसी अपने को
तो ... पढ़ती हैं जब अक़्सर किसी भी
व्यंजन के लिए दिए गए
सामग्रीयों का एक निश्चित माप
मसलन ... बेसन - 150 ग्राम,
प्याज - चार मंझोले माप के( कतरे हुए),
लहसुन - चार कली, हरी मिर्ची - 4 या 5..
इत्यादि - इत्यादि ... वगैरह - वगैरह ....
पर रहता है लिखा प्रायः हर बार
नमक - "स्वादानुसार" और ....
विधि अनुसार हो जाता है
किसी प्रिय के लिए सुस्वादु व्यंजन तैयार
फिर परोसा जाता है मन में लिए ये आस
कि व्यंजन के प्रिय के जीभ पर तैरते ही
तैरेंगे हवा में उसके लिए प्रिय के मुँह से
प्रसंशा के दो-चार बोल ... जो ...
सारे दिन के थकान को बदल देगी पल में
"आह से अहा" तक वाले 'मूव' के
बाजारीकरण करते क़ीमती
विज्ञापन की तरह
पर मन में एक सवाल भी कौंधता है समानान्तर
शायद बार-बार या अक़्सर ...
कि ... व्यंजन- सामग्रियों की मानिंद होती
भले हर चीज़ नापी-तौली जीवन में ...
मसलन ....नक़द दहेज़ की रक़म - 20 लाख
गहना - 20 तोले, एक अदद कार - आयातित,
250 बारातियों का पांचसितारा होटल में स्वागत
ना एक कम ... ना एक ज्यादा...
चुटकी भर सिन्दूर, फेरे - सात ....
इत्यादि- इत्यादि ... वगैरह - वगैरह...
पर ...... !!!!....????......
काश ! "उनका" प्यार मिल पाता
जीवन भर अपनी "इच्छानुसार"
जैसे व्यंजन में नमक ... "स्वादानुसार" .....
कितना सुगढ़ता से गढ़ा है आपने बिंब...नमक की तरह ज़िंदगी में हर भाव,विचार,व्यवहार का संतुलन आवश्यक है....चुटकी के हेर फेर से जायके में फर्क़ पड़ता है।
ReplyDeleteस्वादानुसार नमक...आम सोच से परे बहुत सुंदर रचना..👌
आपकी प्रतिक्रिया किसी भी रचना को उत्कृष्ट बना देती है, वैसे ही मेरी भी इस साधारण रचना को बना रही ... शुक्रिया आपका ...
Deleteनमक - स्वादानुसार ..
ReplyDeleteकितनी सकारात्मकता है इन शब्दों में .. प्रेरित करती अभिव्यक्ति बहुत ही अच्छी लगी .. आभार सहित शुभकामनाएं ।
शुभकामनाओं के लिए आपका आभार महाशय !
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